“गंगोत्री राजमार्ग पर नया आध्यात्मिक केंद्र — मंदिर है या दरगाह? श्रद्धा और भ्रम के बीच जागरूकता की जरूरत!”

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मंदिर या दरगाह? जानिए गंगोत्री राजमार्ग पर स्थित पीर रतननाथ आश्रम की सच्चाई!


मेरु रैबार संवाददाता:
उत्तरकाशी जिले के गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर उजेली  के पास अब एक नई आध्यात्मिक पहचान बन रही है। मंदिर दरगाह श्री पीर रतन नाथ जी महाराज पेशावर  वाले का एक भव्य और भावनाओं से भरा आश्रम – दरगाह  – श्रद्धालुओं के स्वागत लिए पूरी तरह तैयार है।

लेकिन यहां एक सवाल बार-बार सामने आ रहा है — क्या यह मंदिर है या दरगाह?
नाम में ‘पीर’ शब्द जुड़ा होने के कारण कुछ लोग इसे मुस्लिम परंपरा से जोड़ बैठते हैं, जबकि यह स्थान सनातन परंपरा के बेहद प्राचीन, लगभग 1350 वर्ष पुराने आध्यात्मिक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है।

आश्रम ट्रस्ट के अधीन संचालित होता है जिस के अध्यक्ष श्री राम नारायण मल्होत्रा जी है , उन्होंने बताया कि यह स्थान गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य बाबा सिद्ध रतन नाथ जी की तपोभूमि से जुड़ा है। यहां देवी-देवताओं की पूजा शास्त्र मर्यादाओं के अनुसार होती है और  प्रधान देवता हैं श्री महाकाल भैरवनाथ जी, जिनकी अखंड ज्योति इस स्थल की पहचान है।

यह आश्रम न सिर्फ धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है, बल्कि समाज सेवा में भी अग्रणी है। यहां चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रहने और खाने की समुचित व्यवस्था है। आश्रम समय-समय पर जिला प्रशासन, पुलिस, चुनावी ड्यूटी पर तैनात कर्मियों को भी सुविधाएं उपलब्ध कराता है। इसके साथ ही, गरीबों को कंबल वितरण और मेडिकल कैंप जैसे सेवा कार्य भी निरंतर चलते रहते हैं।

श्री मल्होत्रा ने बताया कि आश्रम गंगा मां की सेवा और स्वच्छता के प्रति भी पूरी तरह समर्पित है। आश्रम से एक बूंद भी गंदा पानी गंगा में नहीं जाने दिया जाता। इसके लिए विशेष सफाई व्यवस्था की गई है।

हालांकि, आश्रम के पास बहने वाला एक नाला बारिश के समय गंदगी लाकर आश्रम के पास ही जमा कर देता है जिससे बदबू उत्पन्न होती है और पूजा-अर्चना में विघ्न पड़ता है। आश्रम ने सिंचाई विभाग से इसकी सफाई की मांग की, लेकिन ₹8,32,000 का एस्टीमेट बजट के अभाव में अधर में लटक गया।

श्री मल्होत्रा ने प्रशासन से अपील की है कि गंगा के इस पवित्र स्थल के समीप स्वच्छता को प्राथमिकता दी जाए और गंगा की एक धारा आश्रम के पास से प्रवाहित की जाए, ताकि गंदगी जमा न हो।

इस स्थल की जड़ें केवल उत्तरकाशी तक सीमित नहीं हैं। इसके मूल स्थान पहले पेशावर (पाकिस्तान) में थे। अब दिल्ली, गोरखपुर (उ.प्र.), रतनपुर (नेपाल), और अफगानिस्तान के कई क्षेत्रों में भी इससे जुड़े स्थल मौजूद हैं। हर साल यहां महाशिवरात्रि और महा चौदस के अवसर पर लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं।

आश्रम न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह सेवा, सिमरन और संस्कृति का संगम है। यह स्थान हमें सिखाता है कि श्रद्धा सीमाओं से परे होती है — नाम में चाहे मंदिर हो या दरगाह, सच्ची भक्ति वहां होती है जहां सेवा और मर्यादा हो।


संवाददाता: मेरु रैबार, उत्तरकाशी

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