खनन विभाग की ई-नीलामी और तकनीकी निगरानी से 2024-25 में 1100 करोड़ का राजस्व लक्ष्य पार

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देहरादून: उत्तराखंड खनन विभाग ने वर्ष 2024-25 में 1100 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व जुटाकर एक ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व और खनन निदेशक राजपाल लेघा की रणनीतिक कार्यशैली के चलते यह सफलता संभव हो सकी है। यह राजस्व राज्य सरकार द्वारा तय किए गए 875 करोड़ रुपये के लक्ष्य से कहीं अधिक है।

उपलब्धि में अहम भूमिका निभाई

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, राज्य सरकार ने खनन क्षेत्र में पारदर्शिता, तकनीक और सख्त निगरानी तंत्र को प्राथमिकता दी है। विभाग द्वारा की गई ई-नीलामी प्रक्रिया, आधुनिक निगरानी प्रणाली और अवैध खनन पर सख्त कार्रवाई जैसे निर्णयों ने इस उपलब्धि में अहम भूमिका निभाई है।

कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए

राजपाल लेघा ने जुलाई 2024 में विभाग का स्थायी प्रभार संभालते ही कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। उनके नेतृत्व में 159 उपखनिज पट्टे और 2 सिलिका सैंड पट्टों का ई-नीलामी के माध्यम से आवंटन किया गया। इससे प्रक्रिया में पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को बल मिला।

74.22 करोड़ रुपये की वसूली

खनन निगरानी को और प्रभावी बनाने के लिए प्रदेश के 45 माइन चेक पोस्ट्स पर रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) रीडर, नाइट विजन कैमरे और अन्य निगरानी उपकरण स्थापित किए गए हैं। साथ ही, इंफोर्समेंट सेल और जिला स्तरीय निगरानी इकाइयों की सक्रियता से अवैध खनन पर प्रभावी नियंत्रण पाया गया है। इससे विगत वर्षों में 74.22 करोड़ रुपये की वसूली भी की गई है।

लिप्त लोगों पर कठोर कार्रवाई

राजपाल लेघा ने स्पष्ट किया कि विभाग का उद्देश्य केवल राजस्व अर्जित करना नहीं, बल्कि खनन गतिविधियों को पर्यावरणीय संतुलन, तकनीकी सुरक्षा और नैतिक जिम्मेदारी के साथ संचालित करना है। उन्होंने कहा कि ईमानदार व्यवसायियों को पूरा समर्थन दिया जाएगा, जबकि अवैध कार्यों में लिप्त लोगों पर कठोर कार्रवाई जारी रहेगी।

आत्मनिर्भरता को नई दिशा देगा

यह ऐतिहासिक उपलब्धि उत्तराखंड के विकास में खनन विभाग की मजबूत भूमिका को दर्शाती है और आने वाले समय में राज्य की अर्थव्यवस्था को और सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध होगी। इससे न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे, बल्कि अधोसंरचना विकास, राजस्व वृद्धि, औद्योगिक विस्तार और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को भी बल मिलेगा। पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखते हुए सतत विकास की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा, जो राज्य की समृद्धि और आत्मनिर्भरता को नई दिशा देगा।

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