उत्तराखण्ड के सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को राहत, चिकित्सा सेवा शुल्क में की गई कटौती…
उत्तराखंड राज्य के सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों के लिए एक राहत भरी खबर सामने आई है। अब राजकीय अस्पतालों में आंतरिक रोगियों यानी ओपीडी के दौरान होने वाले पंजीकरण की दरें कम होंगी साथ ही मरीजों को दी जाने वाली एंबुलेंस सहित विभिन्न अन्य चिकित्सा सेवाओं में भी कम शुल्क देना होगा। वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रेफर करने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा मरीजों से पुनः पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसी तरह उप जिला चिकित्सालय से जिला चिकित्सालय में रेफर करने पर जिला चिकित्सालय द्वारा पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जाएगा।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की आईपीडी में अभी तक 17 रुपये लिया जा रहा है, जिसे अब 15 रुपये किया गया है। इसी तरह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 57 रुपये से 25 रुपये जबकि जिला व उप जिला चिकित्सालय में 134 रुपये से 50 रुपये किया गया है। वहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की ओपीडी में अभी तक 13 रुपये लिया जा रहा है, जिसे अब 10 रुपये किया गया है। इसी तरह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 15 से 10 रुपये, जबकि जिला व उप जिला चिकित्सालय में 28 रुपये से 20 रुपये किया गया है।
प्रदेश के वित्त मंत्री डा. प्रेमचंद अग्रवाल ने जानकारी देकर बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में रेफर करने पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र द्वारा मरीजों से पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसी तरह उप जिला चिकित्सालय से जिला चिकित्सालय में रेफर करने पर जिला चिकित्सालय द्वारा पंजीकरण शुल्क नहीं लिया जाएगा। साथ ही बैड चार्जेज भी कम देना होगा। उन्होंने बताया कि विभागीय एंबुलेंस में अभी तक रोगी वाहन शुल्क को 05 किलोमीटर तक 315 रुपये न्यूनतम एवं अतिरिक्त दूरी के लिए 63 रुपये प्रति किलोमीटर लिया जा रहा है, जिसे 05 किलोमीटर तक 200 रुपये न्यूनतम तथा अतिरिक्त दूरी के लिए 20 रुपये प्रति किलोमीटर किया गया है।
डा. अग्रवाल ने कहा कि राज्य की विषय भौगोलिक परिस्थितियों एवं कमजोर आर्थिक स्थितियों के चलते पर्वतीय जनपदों में आम जनमानस केवल सरकारी चिकित्सालयों पर निर्भर रहता है। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि अब राज्य में यूजर्स चार्जेज में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि भी नहीं की जाएगी। इसके विपरीत आम जनमानस एवं रोगियों के हित में यूजर्स चार्जेज में तीन वर्ष के बाद शासन स्तर पर समीक्षा की जाएगी।