दृष्टिबाधा को मात देकर 75% अंकों के साथ उत्तीर्ण की 10वीं परीक्षा” – “दृढ़ संकल्प की मिसाल बनी उत्तरकाशी की प्रियांशी रावत,

1 min read

उत्तराखंड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के गेंवला ब्रह्मखाल गांव की बेटी कु० प्रियांशी रावत ने यह साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और लगन के आगे कोई बाधा टिक नहीं सकती। 100% दृष्टिबाधित होने के बावजूद प्रियांशी ने उत्तराखंड बोर्ड से 10वीं की परीक्षा में 75% अंक प्राप्त कर पूरे क्षेत्र का नाम रोशन किया है।

प्रियांशी की इस असाधारण सफलता पर क्षेत्र भ्रमण के दौरान भारत सरकार की पूर्व राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग सदस्य एवं भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा की राष्ट्रीय मंत्री डॉ. सुश्री स्वराज विद्वान ने ब्रह्मखाल स्थित अपने आवास पर साल ओढ़ाकर उनका सम्मान किया और उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं।

मुख्य बिंदु (Highlights):

  • 🏞️ स्थान: उत्तरकाशी जनपद के गेंवला ब्रह्मखाल गांव की निवासी कु० प्रियांशी रावत
  • 👁️‍🗨️ दृष्टि बाधा: 100% दृष्टिबाधित, लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति की मिसाल
  • 📚 शैक्षणिक उपलब्धि: उत्तराखंड बोर्ड की 10वीं परीक्षा में शानदार 75% अंक
  • 🧕 पारिवारिक पृष्ठभूमि: निर्धन परिवार, पिता का निधन 7-8 वर्ष पूर्व, मां करती हैं मेहनत-मजदूरी
  • 🎖️ सम्मान: डॉ. सुश्री स्वराज विद्वान ने ब्रह्मखाल में साल ओढ़ाकर किया सम्मान
  • 🎓 भविष्य की योजना: प्रियांशी ने जताई आगे पढ़ाई की इच्छा
  • 📩 सरकारी पहल: डॉ. स्वराज ने केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेन्द्र कुमार को पत्र लिखकर प्रवेश की मांग की
  • 📞 सक्रिय प्रयास: NIVH देहरादून के वरिष्ठ अधिकारियों से दूरभाष पर हुई बात
  • आश्वासन: NIVH अधिकारियों द्वारा प्रवेश में हरसंभव सहायता का वादा

“Meru Raibar” की ओर से प्रियांशी रावत को ढेरों शुभकामनाएं — तुम ही हो उत्तराखंड की सच्ची शक्ति और उम्मीद!”

सम्मान समारोह के दौरान प्रियांशी ने आगे की पढ़ाई जारी रखने की इच्छा प्रकट की, जिसे गंभीरता से लेते हुए डॉ. स्वराज विद्वान ने भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेन्द्र कुमार को पत्र लिखकर प्रियांशी को राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान (NIVH), देहरादून में 11वीं कक्षा में प्रवेश दिलवाने का आग्रह किया।

गौरतलब है कि प्रियांशी एक अत्यंत निर्धन परिवार से संबंध रखती हैं। उनके पिता का निधन लगभग 7-8 वर्ष पूर्व हो चुका है और उनकी विधवा मां मेहनत मजदूरी कर अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं।

डॉ. स्वराज विद्वान ने न केवल पत्राचार किया, बल्कि NIVH देहरादून के वरिष्ठ अधिकारियों से भी दूरभाष पर वार्ता कर प्रियांशी को शीघ्र प्रवेश दिलाने की मांग रखी, जिस पर अधिकारियों द्वारा हरसंभव सहायता का आश्वासन दिया गया।

प्रियांशी की यह कहानी केवल एक परीक्षा पास करने की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, संघर्ष और समाज के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन गई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © All rights reserved. | Newsphere by AF themes.